new mahadev shlok in hindi

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    New mahadev shlok with meaning



new mahadev shlok in hindi with arth | bholenath shlok in sanskruit | shlok 





श्लोक:
                            अहं निर्विकल्पो निराकाररूपो,
                            विभुत्वाच सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम्।
                            न चासङ्गतं नैव मुक्तिर्न मेयः,
                            चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्॥
अर्थ :
                            अहं - मैं (आत्मा)
                            निर्विकल्पो - निर्विकल्प (निरुपाधिक) या निर्मिति से अनुपयोगी
                            निराकाररूपो - निराकाररूप आकार अनुपयोगी
                            विभुत्वाच - सर्वत्र सब जगह व्याप्ति से
                            सर्वेन्द्रियाणाम् - सभी इन्द्रियों की
                            न चासङ्गतं - न संगति संबंध वाला
                            नैव - नहीं
                            मुक्तिः - मुक्ति मुक्त हो जाना, मुक्ति प्राप्ति
                            न मेयः - न मेय विषय, कमय
                            चिदानन्दरूपः - चित् चेतना और आनंद खुशी का रूप
                            शिवः - शिव भगवान शिव
                            अहं - मैं आत्मा
                            शिवः - शिव भगवान शिव

अर्थात्:
मैं निर्विकल्प हूं, जो बिना किसी डिग्री और आकार के है| मैं सभी इंद्रियों की विशालता से सर्वत्र विद्यमान हूं| मुझे किसी संगति की आवश्यकता नहीं है, मुक्ति मुझे प्राप्त नहीं होती है और मैं किसी विषय के आधार नहीं हूँ| मैं सचेत और आनंद का परिचय हूं, मैं शिव हूं, मैं शिव हूं|
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 श्लोक:
                            मनोबुद्ध्यहङ्कार चित्तानि नाहं,
                            न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे |
                            न च व्योम भूमिर्न तेजो न वायुः,
                            चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ||
अर्थ :
                            मनः - मन (मनस)
                            बुद्धि - बुद्धि
                            अहंकार - अहंकारी (अहंकार, अंगकार)
                            चित्तानि - चित्त मन की संज्ञा
                            नाहं - नहीं
                            न च - और नहीं
                            श्रोत्र - श्रोत्र कान
                            जिह्वा - जिह्वा जीभ
                            न च - और नहीं
                            घ्राण - घ्राण नाक
                            आँख - आँख
                            न च - और नहीं
                            व्योम - व्योम आकाश
                            भूमि - भूमि पृथ्वी
                            न तेजो - और नहीं तेज आग
                            न वायुः - और नहीं वायु हवा
                            चिदानन्दरूपः - चिदानंदरूप (चेतना और आनंद का स्वरूप)
                            शिवः - शिव भगवान शिव
                            अहं - मैं आत्मा
                            शिवः - शिव भगवान शिव
                            अहं - मैं आत्मा

अर्थात्:
मन, बुद्धि, अहंकार, चित्त और इंद्रियों में मैं नहीं हूँ | न जाली, जीभ, नाक और आँखों में मैं नहीं हूँ | न आकाश और पृथ्वी, न आग और हवा में मैं नहीं हूं ||

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श्लोक:
                            न च प्राणसङ्गतं नैव वाऽपानं |

                            न वा क्रियायोगे न च धारयामि  ||

                            न च विराट् पाणि न पादं विश्वत् |
 
                            चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ||

अर्थ :
 मुझे प्राण (प्राणवायु) से संबंधित नहीं है, और न मैं वायु को धारण करता हूं |

 मैं क्रियायोग (क्रिया-ध्यान) को नहीं करता, और न मैं धारण करता हूँ |

 मेरे विराट (विश्वरूप) के हाथ और पैर नहीं हैं, जगत (सृष्टि) में नहीं हैं |

 मैं चित् (चेतना) और आनंद (ख़ुशी) का संदर्भ हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ ||


अर्थात्:
मैं प्राण के संग नहीं हूँ, और मैं वायु को धारण नहीं करता हूँ | मैं क्रियायोग नहीं करता, और मैं धारणा नहीं करता हूँ | मेरे विश्वरूप के हाथ और पैर नहीं हैं, वे जगत में नहीं हैं | मैं सचेत और आनंद का परिचय हूं, मैं शिव हूं, मैं शिव हूं ||


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श्लोक:
                            नापुण्यं न पापं न सौख्यं नाप्तिः 

                            चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् 

                            चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम्  ||

अर्थ :
मुझे पुण्य (शुभ कर्म) नहीं है, न पाप (अशुभ कर्म) है, न सुख (सुखदायक वस्तु) है, न अपत्ति (दुखदायक वस्तु) है।

न मंगलं नौ विराजति वेदनाम् - मेरे लिए ना कोई मंगल (मंगल करने वाली घटना) है और ना ही वेदना (ताप, दुःख) विराजती है।

मैं चित् -चेतना और आनंद (ख़ुशी) का संदर्भ हूँ, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ ||



अर्थात्:
मेरे लिए ना कोई पुण्य है, ना कोई पाप है, ना कोई सुख है, ना कोई दुःख है। मैं जागरूक और आनंद का परिचय हूं, मैं शिव हूं, मैं शिव हूं। मेरे लिए कोई मंगल घटना नहीं है और ना ही कोई वेदना (ताप, दुःख) विराजित है। मैं जागरूक और आनंद का परिचय हूं, मैं शिव हूं.

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श्लोक:
                            आज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन-शालाकया चक्षुरुन्मिलितं येन |
                            तस्मै श्रीगुरवे नमः श्रीमन्,
                            चिदानन्दरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् ||

अर्थात्:
जो गुरु के ज्ञानाञ्जन-शाला (ज्ञान का अंजन) अज्ञानता से अज्ञान को दूर कर चक्षु अज्ञातमिलित हुआ है,

उस महान श्रीगुरु को नमस्कार हो, जो चित् (चेतना) और आनंद (ख़ुशी) का स्वरूप है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ ||



अर्थात्:
मेरे ज्ञान के अंजन द्वारा जो अज्ञानता के अज्ञान को दूर कर चक्षुओं को अप्रसन्न किया है,
उस महान श्रीगुरु को नमस्कार हो, जो चित् (चेतना) और आनंद (ख़ुशी) का स्वरूप है, मैं शिव हूँ, मैं शिव हूँ ||

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